यहां जानें डायबिटीज से संबंधित हर सवाल का जवाब और प्राकृतिक उपचार

यहां जानें डायबिटीज से संबंधित हर सवाल का जवाब और प्राकृतिक उपचार

डॉ. हरिकृष्ण बाखरु

डायबिटीज अधिक शुगर युक्त आहार लेने के कारण होने वाला रोग है। इस रोग में खून में शुगर की मात्रा बढ़ जाती है। इस रोग के होने का मुख्य कारण है। शरीर में इंसुलिन की मात्रा का कम हो जाना या बिल्कुल भी न होना। इंसुलिन की कमी से कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और वसा की पाचन क्रिया में गड़बड़ी पैदा हो जाती है।

डायबिटीज रोगी को बार-बार पेशाब करने के लिए जाना पड़ता है। इस बीमारी से ग्रसित व्यक्ति के खून में शक्कर की मात्रा अधिक हो जाती है। मूत्र के रास्ते में भी शक्कर की मात्रा बढ़ जाती है। मूत्र के रास्ते शक्कर निकलती है और रोगी को बार-बार प्यास लगना, भूख का बढ़ जाना, पैरों में दर्द, सुबह-सुबह जीभ पर गंदगी का होना, अधिक नींद आना डायबिटीज के लक्षण हैं।

डायबिटीज की बीमारी काफी पुरानी है और पहले की अपेक्षा आज लोग इसकी चपेट में ज्यादा आ रहे हैं। विकसित देशों में तो यह रोग और भी भयंकर रूप धारण करता जा रहा है। इसका मुख्य कारण है भोजन में आवश्यकता से अधिक पोषक तत्वों की मात्रा।

डायबिटीज एक खतरनाक बीमारी है। इसकी चपेट में आए व्यक्ति का स्वास्थ्य दिन-प्रतिदिन गिरता जाता है और इस बीमारी की चपेट में हर उस व्यक्ति के आने की संभावना है जो शारीरिक परिश्रम नहीं करता है यानीी मेहनत नहीं करता है और आराम की जिंदगी जीता है। गलत तरीके का खान-पान और रहन-सहन इस बीमारी में सहायक होते हैं।

इस रोग की जांच करते समय पहले खाना खाने के पहले शरीर में शुगर का स्तर देखा जाता है और फिर खाना खाने के 2 घंटे बाद जांच की जाती है। यह बीमारी बच्चे से बूढ़े किसी भी उम्र के व्यक्ति को हो सकती है। लेकिन मध्य उम्र से बुढ़ापे तक के लोगों को इसकी आशंका अधिक रहती है। एक अनुमान के अनुसार 80 से 85 प्रतिशत रोगी 45 साल या इससे अधिक उम्र के होते हैं।

लक्षण:

इस बीमारी के दो प्रमुख लक्षण होते हैं-  पहला पेशाब में शुगर बढ़ जाती है।

आम तौर पर एक स्वस्थव्यक्ति रोज करीब 3 पाइंट पेशाब करता है, लेकिन डायबिटीज के रोगी के पेशाब की मात्रा 8 से 40 पाइंट तक हो सकती है। पेशाब का रंग पीला और स्वाद मीठा एवं करते समय जलन होती है। पेशाब में शुगर (ग्लूकोज) की मात्रा प्रति औंस में 2 से 40 ग्रेन तक होती है। कुछ मामलों में इसकी मात्रा दो एल.बी.एस तक पहुंच सकती है तथा मात्रा 30 पाइंट तक।

डायबिटीज के रोगी को बार-बार भूख और प्यास महसूस होती है और बार-बार खाने पर भी वह मोटा नहीं होता है। उसे जल्दी ही मानसिक और शारीरक रूप से थकान महसूस होती है और चेहरे पर पीलापन छा जाता है। रोगी के शरीर में खून की भी कमी हो सकती है। ज्ञननेंद्रिय के आस पास तेज खुजली और कमजोरी महसूस होती है। नींद भी बहुत आती है और सेक्स करने की इच्छा भी खत्म हो जाती है।

कारण:

डॉक्टरों के अनुसार, यह बीमारी शुरुआत में अधिक खाने और मोटापे के कारण होती है। न केवल शुगर व रिफाइंड करोहाइड्रेट, बल्कि प्रोटीन और वसायुक्त आहारों को भी अधिक लेने से इनका परिवर्तन शर्करा में हो जाता है और डायबिटीज की शुरुआत हो जाती है। ज्यादा भोजन से पित्ताशय की सामान्य प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न हो जाती है। एक अनुमान के अनुसार, मध्यम मोटापे के शिकार लोगों में डायबिटीज का खतरा चार गुना और ज्यादा स्थूल लोगों में 30 गुना रहता है।

कई बार मानसिक समस्याओं के कारण भी चयापचय प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न हो जाती है। इनके कारण भी पेशाब में शुगर आ सकती है। इसके अलावा कैंसर, क्षय रोग, जैसी बीमारियां भी डायबिटीज का कारण बनती हैं। अनुवांशिकता (अगर माता पिता को यह बीमारी रही हो तो बच्चों को भी हो सकती है) भी एक बड़ा कारण हो सकता है। कहा भी गया है कि बीमारी अनुवांशिकता के बक्से में बंद रहती है। मोटापा उस बक्से को खोल देता है।

उपचार:

बीमारी को जड़ से साफ कर देना और रोगी के शरीर की इन्द्रियों की अन्य विषमताओं को दूर करना ही उपचार है। डायबिटीज के उपचार में संतुलित भोजन अहम् भूमिका अदा करता है। रोगी को शाकाहारी भोजन खासकर हरी सब्जियां, कम कैलोरी तथा कम वसायुक्त और उच्च स्तरीय प्राकृतिक आहार लेना चाहिए। फल, हरी सब्जियां, दूध से बने उत्पाद और अनाज आदि। इन्हें अच्छी तरह खाना चाहिए, ताकि सलाह भोजन लार के साथ अच्छी तरह घुल जाए और पचने में आसानी हो।

पके हुए मांडयुक्त भोजन से परहेज रखना जरूरी है, क्योंकि ऐसे भोजन में सेल्युलाइट नामक तत्व पाया जाता है, जो भोजन को पचाते समय अपने घोल से बाहर निकल आता है, जिससे भोजन मिले स्टार्च को शरीर आसानी से शोषित कर लेता है। जब जरूरत से ज्यादा स्टार्च शरीर में आ जाता है तो उसे गुर्दे बाहर निकालते हैं। यही अतिरिक्त स्टार्च शुगर के रूप में शरीर के बाहर निकलता है।

(यह आलेख डॉ. हरिकृष्ण बाखरु द्रवारा लिखी गयी किताब रोगों का प्राकृतिक उपचार से लिया गया है)

 

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